सनातन संस्कृति ने हमें अध्यात्म का उत्कृष्ट मार्ग दिया है,जैसे-जैसे आध्यात्मिक परिपक्वता आती है, व्यक्ति विधि विधान और पाखंड से दूर होते जाता है और ध्यान में लीन होते जाता है,अध्यात्म ही वो स्थान है, जहाँ आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं, वस्तुतः अध्यात्म ही आपकी मंजिल है ।
जीवन दो स्तरों पर जिया जाता है, एक सांसारिक जीवन, दुसारा आध्यात्मिक जीवन, अक्सर लोगों को लगता है कि अध्यातम में जाने के लिए सन्यास लेना अनिवार्य है। सन्यास एक व्यक्ति का निजी निर्णय होता है, आध्यात्मिक स्तर को पाने के लिए सन्यासी होना मापदंड नहीं है।
जन्म से प्रारंभ होकर मृत्यु पर समाप्त होने वाला जीवन अनवरत है, जो हमें मृत्यु के साथ समाप्त होता दिखता है, किन्तु मृत्यु अंत नहीं, मृत्यु भी आरम्भ है। ये जीवन चक्र कभी समाप्त ही नहीं होता, संसार को जो अंत होता दिखता है, अध्यात्म में डुबने पर समझ आता है, कि अंत ही प्रारंभ का बीजारोपण है। यहां कुछ भी समाप्त नहीं होता, केवल रूप परिवर्तित होता है। विज्ञान भी मानता है कि ब्रह्मांड ऊर्जा से बना है, जो कभी समाप्त नहीं होता ऊर्जा का रूप परिवर्तन होता है।
हमारी सनातन संस्कृति में गृहस्थ जीवन में रहते हुए परमात्मा प्राप्ति का मार्ग बताया गया है, किन्तु हम में से कितने लोग हैं जो वेदों का अध्ययन करते हैं, कितनों ने रामायण का अध्ययन किया है, कौन गीता का पाठ करता है, और गीता का सार समझता है..? ये यक्ष प्रश्न की तरह है, हम अति भाग्यशाली हैं कि हमें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान उपलब्ध तो है, लेकिन विडंबना है, कि हम इस ज्ञान को अपने जीवन में नहीं उतारते, और आज हमारे भटकाव का मुख्य कारण यही है। जीवन के हर पहलू को समझना हो तो अध्यात्म की शरण लेनी चाहिए।
हममें से ज्यातर लोग केवल पूजा-पाठ या मंदिर जाने को अध्यात्म समझ लेते हैं, किन्तु ऐसा नहीं है। ये एक दिनचर्या हो सकती है, अच्छी आदत है, किंतु अध्यात्म आपकी समझ को परिपक्व करता है, संसार में रहकर संसार से विरक्त रहने की कला सिखाता है, अध्यात्म प्रेम और समर्पण सिखाता है, अपको सामान्य से विशेष की ओर लेकर जाता है, शांति और आनन्द की अनुभूति कराता है।
अध्यात्म को मंजिल मानने का अर्थ है आत्म-ज्ञान, शांति और सच्चे आनंद की प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बनाना। भौतिक उपलब्धियाँ क्षणिक संतोष दे सकती हैं, लेकिन आत्मिक संतुलन और आंतरिक शांति ही स्थायी सुख का स्रोत होती हैं। अध्यात्म केवल धर्म या पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्वयं को समझने, अपनी सीमाओं को पार करने और उच्चतर चेतना से जुड़ने की प्रक्रिया है। यह हमें अहंकार, मोह और भटकाव से मुक्त कर सही दिशा में चलना सिखाता है।
जब हम बाहरी दुनिया की अस्थिरता से ऊपर उठकर अपने भीतर स्थिरता पाते हैं, तभी सच्चे अर्थों में मंजिल पर पहुँचते हैं, अगर अध्यात्म को जीवन की मंजिल बनाते हैं, तो हर अनुभव हमें सीखने और आगे बढ़ने का अवसर देता है। तब जीवन केवल संघर्ष नहीं रहता, बल्कि आत्म-विकास और शांति का एक सतत प्रवाह बन जाता है। इसका मुख्य संदेश यह है कि अच्छे और पुण्य कर्म करने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा और यश बढ़ता है, और उसका जीवन सार्थक और सफल बनता है। यह जीवन को सही दिशा में जीने और समाज में अच्छा योगदान देने की प्रेरणा देता है, और व्यक्ति को आत्मशांति, परमानन्द की अनुभूति कराता है।
जिला ब्यूरो- आनंद मराठे, जांजगीर चांपा, छत्तीसगढ़ ।